कविता: झारखण्ड से शब्दों में उलझी एक लड़की के सुलझे से शब्द

क्या लिखूं क्या न लिखूं??

लिखते हुए सोचना कि
क्या लिखा नहीं मैंने
जो लिखना अभी शेष रह गया

अभी शेष है लिखना मेरा

अभी खेत लिखूंगी
लिखूंगी नदी
अभी प्रेम लिखूंगी
लिखूंगी प्रारंभ
अभी कुम्हार लिखूंगी
लिखूंगी मजदूर
अभी खाद्यान्न लिखूंगी
लिखूंगी कारखाने
अभी जंगल लिखूंगी
लिखूंगी महानगर
अभी पुरुष लिखूंगी
लिखूंगी स्त्री

मजहब नहीं लिखूंगी
न लिखूंगी सत्ता
राजा नहीं लिखूंगी
न लिखूंगी प्रजा

अभी बहुत कुछ है लिखना
कि मेरा प्रेयस कहता है
कविता पेट नहीं भरती मन भरती है

तो एक दिन खाली पेट भरे मन से
लिखना तुम
एक बेहतरीन धुन

और मत छोड़ना उस धुन पर अपना नाम
कि जब उसे कोई गाऐ तो कहे

नामालूम कौन लिख गया है
पर जिसने भी लिखा
सच लिख है!

 

लेखिका –

(झारखण्ड से हैं। लगातार कविताएं लिखती हैं। फेसबुक पर काफी सक्रिय भी हैं। सरकारी नौकरी करते हुए अक्सर लोगों के पास समय का अभाव होता है मगर दीपिका इसमे से भी समय निकालकर साहित्य को समय देती हैं। दीपिका का मानना है कि जिंदगी में साहित्य के बिना सबकुछ अधूरा है।)

©दीपिका केशरी

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